शुक्रवार, 4 मई 2018

रेप (RAPE)


                            
कविता      :- रेप  (RAPE)  


कवि         :- पवन फ्रेणिया




सोचण नै मजबूर करया इस समाज नै बेटी मैं
धरती पै लाऊँ या गर्भ मै दबवा दूँ गेटी मैं…….जन्म देउँ या कोख़ मै दबवा दूँ गेटी मैं…….

                 दरिंदे भरे पड़ै सै आड़ै तनै नोच कै खाज्यांगे
                 किस-किस के पहरे देऊंगा तनै खोस कै खाज्यांगे
                 चन्दरमा से तेरे चरित्र कै दाग़ ये काला लाज्यांगे
                 पंचायती भी आखिर मै तनै गलत बताज्यांगे

इस जमाने की चाल नै देख कै सूं लाचार बेटी मैं…………
धरती पै लाऊँ या गर्भ मै दबवादूँ गेटी मैं…….जन्म देउँ या कोख़ मै दबवादूँ गेटी मैं…….

                 बच्ची, बूढ़ी, जवान आड़ै कोए ना सेफ सै
                 8 महीनै की बच्ची आड़ै होज्या रेप सै
                आज का माणस बुरे कर्मों तै होया लेप सै
                अच्छे विचारां की बेटी ना रही टेक सै

रोता कोन्या तनै देखणा चाहता बेटी मैं………
धरती पै लाऊँ या गर्भ मै दबवादूँ गेटी मैं…….जन्म देउँ या कोख़ मै दबवादूँ गेटी मैं…….

                 घर तै बाहर लिकड़ना बेटी महाभारत होज्यागी
                 लोगाँ की गलत सोच तेरी जिंदगी खोज्यागी
                 कुछ ना चारा चालै रो पिट कै सोज्यागी
                 फरैण आलै की सारे को रै -रै माटी होज्यागी

आगै कुआँ पीछै खाई कित जाऊँ बेटी मैं…….
धरती पै लाऊँ या गर्भ मै दबवादूँ गेटी मैं…….जन्म देउँ या कोख़ मै दबवादूँ गेटी मैं…….




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