कविता      :- खाट
                             कवि         :- पवन फरैणिया
मेरी खेत मै खाट रै घली हुई, फसलां का रहूं रूखाळी
रै  
पांच किल्ले लिये ठेके पै घराँ बाट देखै घरआळी रै 
उसनै गुस्से मै कई बै कह लिया वारी -सवेरी तो आज्या कर......
         मनै कुछ ना लेणा
तेरे तै दो घड़ी बैठ बतलाज्या कर…मेरी खेत मै खाट रै घली हुई
दिन मै माटी गेल माटी रहवै रात की करड़ी ड्यूटी हो 
फेर भी लत्ते टांगण नै घर मै कोन्या खुटी हो 
रहवै फिकर मै हर टैम टुकड़ा तो ढंग तै खाज्या कर.....
          मनै कुछ ना लेणा तेरे तै दो घड़ी बैठ बतलाज्या कर…मेरी खेत मै खाट रै घली हुई
एक
फसल का रहवै रूखाळी दूजी छोडी सुनी हो 
सोक
कहूं के घर का गुजारा अरमाना के खुनी हो 
रोती
फिरै मेरी जवानी कदै छाती के तो लाज्या कर....
            मनै कुछ ना लेणा
तेरे तै दो घड़ी बैठ बतलाज्या कर…मेरी खेत मै खाट रै घली हुई
दिन
का बेरा कोन्या पाटता भाज-दौड़  कै कट्ज्या टैम
 ईब सी आवै ईब सी आवै सारी रात रहे जा बैहम 
फरैणिये
ना आवै याद तेरी कोए इसी दवाई पियाज्या कर....
          मनै कुछ ना लेणा तेरे तै दो घड़ी बैठ बतलाज्या कर…मेरी
खेत मै खाट रै घली हुई


