कविता :- डीफॉल्टर किसान
(Haryanvi Kvita)
लेखक :- पवन फ्रेणिया
पीढ़ी खपगी खेत मै जिसकी वो आज भी लाचार
रै
मिटटी तै सोना उगानिये के सिर पै करजे
का भार रै
न्युये बदले जावै सरकार रै....पर इनकी
सुणणियां कोए आता ना
इनका तो लागै राम भी रूस ग्या इनकी
तरफ लखाता ना
बैंकां तै नोटिस आवै क्यूँ पैसे लैकै
सोग्या रै……..
इस देश का पेट भरणिया आज डीफॉल्टर होग्या रै……………
इस देश का
अन्नदाता आज डीफॉल्टर होग्या रै………………..
आढ़ती कै ला-ला छाप अंगूठा पड़ग्या लीला
रै
क्यूकर अपणी छाती डाटै गिरवी पड़्या
सै किल्ला रै
आढ़ती की उधार.... राम की मार. ....
ठेका दे दिया मोटा रै
किसकै आगै जाकै रोवै कै मेरै आग्या
टोटा रै
ज़मीदार का भाग लागै पड़कै सोग्या रै……….
इस देश का पेट भरणिया आज डीफॉल्टर होग्या रै……………
इस देश का
अन्नदाता आज डीफॉल्टर होग्या रै………………..
छोरी बैठी घरां कुवारी उसकै भी हाथ
करणे पिळे सैं
कोए बूलेट मांगै कोए मांगै सफारी चारों
तरफ के मरणे सैं
चारों तरफ अँधेरा दिखै ना सूरज की लाली
रै
फेर घरां आकै लोग कहवैंगे कयातैं फांसी
खाली रै
फ्रेणिये बालकां की अगत मै बीज भिगन
के बोग्या रै………
इस देश का पेट भरणिया आज डीफॉल्टर होग्या रै……………
इस देश का
अन्नदाता आज डीफॉल्टर होग्या रै………………..
डीफॉल्टर किसान ( एक हरयाणवी कविता )
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